यह एक काल्पनिक काव्य है , जिसमे एक नारी(can be more considered as married) के दृष्टिकोण को दर्षाया है |
मेरी नज़रे तो झुकी हुई थी ,
साँसे कैसे रुकी हुई थी |
बँधन की डोर कमज़ोर हो रही थी
धीमे धीमे मै तुमसे दूर हो रही थी,
रुक जाती,मुझे रोका नहीं ,
मुड़ जाती, तुमने टोका नहीं |
फिर भी ये इलज़ाम मुज पर आया ,
दुनिया ने मुझे ही कठोर ठहराया |
सबकी नज़रे मुजको ही सताती है ,
तुम्हे तो वो मासूम ठहराती है |
कुछ बोलू तो सब कहते- जुबान लड़ाती है |
मै खामोशी से बस चलती गई ,
तुम्हारी खामियों को ढकती गई |
मुजपे नाम आता गया ,
और मै चुप चाप सहती गई|
मैने तो अपना हर फ़र्ज़ निभाया ,
फिर क्यों न तुम्हे मेरा साथ भाया ?
आज पास नहीं, तो करते हो मुझे इतना याद ,
कल साथ थी, तो हर पल करते थे फ़रियाद |
अब मै दूर निकल चुकी हू ,
ज़िन्दगी में आगे बढ़ चुकी हू |
अब ना पुकारो मुझे , ना लौट के आउंगी ,
अभिमान नहीं पर स्वाभिमान तो दिखाउंगी |
अगर चाहत हो जिंदा तो तुम भी आगे बढ़ जाओ ,
ज़िन्दगी की राहो में मुझसे दुबारा मिल जाओ |
एक कोशिश तो करो , थोडा हौसला तो दिखाओ ,
उम्मीद जगा कर अब दुबारा ना बुझाओ |
हर बुरी याद को अतीत में दफ़न करेंगे ,
मिलकर एक नयी शुरुवात करेंगे|
साँसे कैसे रुकी हुई थी |
बँधन की डोर कमज़ोर हो रही थी
धीमे धीमे मै तुमसे दूर हो रही थी,
रुक जाती,मुझे रोका नहीं ,
मुड़ जाती, तुमने टोका नहीं |
फिर भी ये इलज़ाम मुज पर आया ,
दुनिया ने मुझे ही कठोर ठहराया |
सबकी नज़रे मुजको ही सताती है ,
तुम्हे तो वो मासूम ठहराती है |
कुछ बोलू तो सब कहते- जुबान लड़ाती है |
मै खामोशी से बस चलती गई ,
तुम्हारी खामियों को ढकती गई |
मुजपे नाम आता गया ,
और मै चुप चाप सहती गई|
मैने तो अपना हर फ़र्ज़ निभाया ,
फिर क्यों न तुम्हे मेरा साथ भाया ?
आज पास नहीं, तो करते हो मुझे इतना याद ,
कल साथ थी, तो हर पल करते थे फ़रियाद |
अब मै दूर निकल चुकी हू ,
ज़िन्दगी में आगे बढ़ चुकी हू |
अब ना पुकारो मुझे , ना लौट के आउंगी ,
अभिमान नहीं पर स्वाभिमान तो दिखाउंगी |
अगर चाहत हो जिंदा तो तुम भी आगे बढ़ जाओ ,
ज़िन्दगी की राहो में मुझसे दुबारा मिल जाओ |
एक कोशिश तो करो , थोडा हौसला तो दिखाओ ,
उम्मीद जगा कर अब दुबारा ना बुझाओ |
हर बुरी याद को अतीत में दफ़न करेंगे ,
मिलकर एक नयी शुरुवात करेंगे|
PS : यह एक काल्पनिक काव्य है , जिसमे एक नारी(can be more considered as married) के दृष्टिकोण को दर्षाया है | किसी भी व्यक्ति से इसका कोई सम्बन्ध होना महज़ इतेफ़ाक होगा...
13 comments:
Beautiful :)
yeh drishtikon ek dasta bayan kar jati hai!
Keep penning reicha!
This reminds me of a poem that I read in class twelfth.
Maine usko jab jab dekha,
shola dekha,
lohe jaisa,
tapte dekha,
maine usko,
goli jaise chalte dekha
Its a woman who can liberate herself of all bondage, and also revive others too.
Beautiful read.
Cheers,
Blasphemous Aesthete
@Alcina - Thanks dear !!
Keep smiling :)
@Anshul - I never read any such poem but the lines you took from it are really sweet.
Thanks !
reminds me of two years back , my story ...
sad
but then LIFE happens
Bikram's
Hmm, we gain experience... move on with a smile... its so called life :)
बहुत खूब लिखा आपने
मेरे ब्लॉग पर भी आइये
http://iamhereonlyforu.blogspot.com/
Dhanyvaad chirag :)
A beautiful poem with so much emotion!
Thanks Rahul sir :)
I wonder if that PS was needed?
Anyways, I love Hindi poetry, it's a rare art, I read many English blogs these days.
I liked the artistry.
बँधन की डोर कमज़ोर हो रही थी
धीमे धीमे मै तुमसे दूर हो रही थी,
रुक जाती,मुझे रोका नहीं ,
मुड़ जाती, तुमने टोका नहीं |
When we love someone, is it necessary to get a call to stop... I don't think love leaves an ego to take care of...
You don't need to...
Love is all about being truely, madly , deeply, insanely in it...
DO what your heart says, love is all about 'id' :)
@gaurav --> thanks for your visit. I am glad that you liked it.
Yeah ! i agree, we always need a call to stop ...we hope for it.
very touchy, precious choice of words,
@MarriageBook : thanks :)
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