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उस ढाबे की वो दाल आज बेस्वाद लगी मुझे. तुम्हारी यादो की खटास थी उसमे ||
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दिन ढलता गया पर तुम नहीं आये | बेचैनी बढ़ती गयी पर तुम नहीं आये |
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मेज़ पर रखदो तुम्हारा ये गुस्सा, अहंकार और गुरूर | बस खाली हाथ चले आओ मेरे दिल में रहने ||
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चलो फिर से आज ये तकियाँ हम आधा आधा बाँट ले |
मुश्किल भरी ज़िन्दगी में थोड़ी बहुत खुशिया छांट ले |
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